पुरुषार्थ
पद-परिचय-सोपान
पुरुषार्थ पुरुष शब्द का
सामान्य अर्थ, पुलिंग-मनुष्य
होता है । परन्तु शास्त्रो में पुरुष शब्द का अर्थ मनुष्य-जाति जिसमें पुलिंग और
स्त्री-लिंग दोनो सम्मलित है, के विषेस अर्थ में किया जाता है । अर्थ शब्द के बहुत सारे अर्थ किये जाते
हैं । अर्थ का सामान्य अर्थ, शब्द-अर्थ होता है । अर्थ वित्त के लिये भी प्रयोग किया जाता है । अर्थ शब्द का प्रयोग लक्ष्य के लिये
भी किया जाता है । उपरोक्त वर्णित दोनो शब्दों के अर्थों को संयुक्त करते हुये, पुरुषार्थ का शब्द-अर्थ, मनुष्य के लिये
लक्ष्य के रूप में ग्रहण किया जाना उचित अर्थ है । पुरुषार्थ का अर्थ विशिष्ट
संदर्भो में स्वतन्त्र अधिकार के रूप में किया जाता है । पुरुषार्थ का अर्थ अन्य
विशिष्ट संदर्भो में व्यक्ति का चुनाव के रूप में किया जाता है । पुरुषार्थ का
अर्थ अन्य विशिष्ट सन्दर्भों में, मनुष्य के प्रयत्न के रूप में भी किया जाता है । उपरोक्त वर्णित मनुष्य के
प्रयत्न के विचार में, मनुष्य के प्रयत्नों का शास्त्र में चार वर्ग का उल्लेख मिलता है ।
उपरोक्त कथित मनुष्य के प्रयत्नों के प्रत्येक चार वर्ग का उल्लेख आगे के चार अंको
में प्रस्तुत किये जायेंगे । ….. क्रमश:
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