अभिव्यक्ति ही सृष्टि
पद-परिचय-सोपान
अभिव्यक्ति ही सृष्टि व्यक्ति स्वप्न देखता है । जिस काल अवधि में व्यक्ति स्वप्न देखता है, उस काल अवधि में प्रत्येक व्यक्ति उस स्वप्न दृष्यों को सत्य के रूप में
ही अनुभव करता है । उपरोक्त वर्णित स्वप्न-दशा ही, इस अनुभवगम्य व्यवहारिक जगत् के लिये भी ठीक-रूप में प्रभावी है । यह
प्रत्येक व्यक्ति को अनुभवगम्य व्यवहारिक जगत्, ईश्वर का स्वप्नलोक है, जिसे माया-शक्ति प्रक्षेपित कर रही है ।
व्यष्टि, व्यक्ति का स्वप्न उस व्यक्ति की
निद्रा-शक्ति प्रक्षेपित करती है । समष्टि, ईश्वर का स्वप्न माया-शक्ति प्रक्षेपित करती है । व्यष्टि, व्यक्ति जब स्वप्नकाल विगत हो जाता है, व्यक्ति जब जागृत-दशा को प्राप्त हो जाता है, स्वयं अनुभव करता है कि स्वप्न मिथ्या थे । जब व्यक्ति को आत्म-ज्ञान हो
जाता है, ठीक उपरोक्त वर्णित दशा ही, इस अनुभवगम्य जगत्, के मिथ्यात्व के सम्बन्ध में सम्मुख होती है । ..... क्रमश:
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