उत्पत्ति और लय


पद-परिचय-सोपान
उत्पत्ति और लय व्यक्त-दशा और अव्यक्त-दशा का चक्र ही उत्पत्ति और लय के रूप में उपदेशित किया जाता है । न ही किसी पदार्थ की उत्पत्ति ही सम्भव है और न ही किसी पदार्थ का क्षय ही सम्भव है । उत्पत्ति और क्षय दोनो ही भ्रान्तिकारक शब्द हैं । उत्पत्ति और क्षय दोनो ही शब्दों को व्यवहार में प्रयोग करने में, व्यक्ति के मस्तिष्क में उपरोक्त कथित भ्रान्ति का स्मरण सदैव विद्यमान रहना अनिवार्य है । न ही कोई उत्पत्ति होती है और न ही क्षय होता है, अपितु जब कोई भी वस्तु-रूप इन्द्रीयगोचर व्यवहार्य दशा में व्यक्त हो जाता है, उसे उस वस्तु-रूप की उत्पत्ति कहा जाता है । उपरोक्त कथित उत्पत्ति की विलोम प्रक्रिया अर्थात् जब कोई भी वस्तु-रूप इन्द्रीयगोचर व्यवहार्य व्यक्त दशा से, अव्यवहार्य अव्यक्त कारण दशा में पर्णित होकर इन्द्रीयगोचर नहीं रह जाता है, को लय कहा जाता है । ..... क्रमश:

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