सृष्टि-प्रक्रिया


पद-परिचय-सोपान
सृष्टि-प्रक्रिया अनुभवगम्य सृष्टि का यथा स्वरूप उदय और कालान्तर में सृष्टि का प्रलय एक चक्रीय व्यवस्था है । सृष्टि के सृजन का कारण जहाँ जीवों के संचित कर्म-फलों का भोग, शास्त्रों द्वारा उपदेशित किया गया है, वहीं सृष्टि के प्रलय का कारण निर्धारित करते हुये शास्त्र उपदेश करते हैं कि, माया-कल्पित जगत् काल की सीमा से आच्छादित होने के कारण, काल की पूर्णता पर सृष्टि का विलय अ-परिहार्य बाध्यता है । व्यष्टि स्तर पर प्रत्येक जन्म लेने वाले शिशु का  कालान्तर से बालक-युवा-वयस्क में परिणय और अन्त में मृत्यु अ-परिहार बाध्यता है । जगत् के प्रत्येक अवयव के लिये उपरोक्त कथित नियम प्रभावी है । ..... क्रमश:

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