मोक्ष-पुरुषार्थ
पद-परिचय-सोपान
मोक्ष-पुरुषार्थ पूर्व-वर्णित प्रेय:-पुरुषार्थ दो रूपों में व्यक्ति को दास बनाते हैं ।
प्रेय: का आभाव, शून्यता मानसिक वेदना कारक होती है ।
प्रेय: की उपलब्धि भी मानसिक तनाव की स्थिति-कारक होती है । नवयुवक की शादी नहीं
हो रही है । उसे जीवन-साथी के अभाव की वेदना सताती है । व्यक्ति की शादी हुई है, बच्चे हैं, परन्तु अनुशाशित नहीं हैं । व्यक्ति को
बच्चों की उपस्थिति का तनाव वेदना कारक है । उपरोक्त कथित प्रेय: की दासता से
मुक्त जीवन मोक्ष है । आत्म-स्वामित्व का जीवन मोक्ष है । मोक्ष की दशा में, प्रेय: की शून्यता भी कष्टकारक नहीं है, प्रेय: की पूर्ति भी तनाव कारक नहीं है । ऐसी आत्म-स्वामित्व की दशा
मोक्ष है । यह सर्वोच्च दशा है । यह आदर्श दशा है । इस मोक्ष की दशा के व्यक्ति के
पास यदि सकल माया का अभाव है तो भी उसे कोई मानसिक क्षोभ नहीं है, और कंचिद माया सम्पदा ओत्-प्रोत् है, तो भी वह किसी मानसिक उत्कर्ष की अनुभूति नहीं करता है । उपरोक्त वर्णित
मुक्त दशा की उपलब्धि मनुष्य जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है, मोक्ष है । ..... क्रमश:
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