काम-पुरुषार्थ
पद-परिचय-सोपान
काम-पुरुषार्थ मनुष्य जब अर्थ पुरुषार्थ से आगे बढता है तो उसे इन्द्रीय-वासनाओं की
पूर्ति, शारीरिक-सुख और आराम की कामना-पूर्ति
हेतु पुरुषार्थ की पारी आती है, इन्द्रीय-वासनाओं की पूर्ति, शारीरिक-सुख और आराम की कामना-पूर्ति हेतु किये जाने वाले प्रयत्नों को
काम-पुरुषार्थ के वर्ग में रखा जाता है । उपरोक्त कथित काम-पुरुषार्थ अन्तविहीन
होते हैं । एक की पूर्ति होने के साथ ही दूसरे की इच्छा सृजित होती जाती है । जीवन
के अन्त पर्यन्त काम-पुरुषार्थ की पूर्ति नहीं हो पाती है । ..... क्रमश:
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