अर्थ-पुरुषार्थ
पद-परिचय-सोपान
अर्थ-पुरुषार्थ प्रत्येक जीव बाह्य जगत् से अपने को असुरक्षित अनुभव करता है । अपने
पुरुषार्थ क्षमता के कारण, मनुष्य अन्य-जीव से विलक्षण है । अत:
मनुष्य अभय स्थिति प्राप्त करने के लिये पुरुषार्थ करता है । सुरक्षित रहने के
लिये मकान का निर्माण करता है । पुन: मकान को असुरक्षित अनुभव करता है, तो मकान की सुरक्षा के लिये “सुरक्षा-कर्मी” को प्रयोग करता है ।
उपरोक्त क्रम का विस्तार करता जाता है । मनुष्य धन से सुरक्षा अर्जित करने का
पुरुषार्थ करता है । पुन: उसे अर्जित धन के क्षय का भय होता है । पुन: मनुष्य
अर्जित धन की सुरक्षा का पुरुषार्थ करता है । उपरोक्त समस्त एवं अन्य सादृष्य
पुरुषार्थ को अर्थ-पुरुषार्थ की श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है । .....
क्रमश:
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