अद्वैत द्वैत विचार
पद-परिचय-सोपान
अद्वैत द्वैत विचार पारमार्थिक सत्य एक है । वह कालातीत है । त्रिकालिक सत्य वही हो सकता है, जो कालातीत है । जो कुछ भी काल की सीमा के अन्तर्गत है वह पारमार्थिक
सत्य हो ही नहीं सकता है । वेदों में पारमार्थिक सत्य को ब्रम्ह नाम से उपदेश किया
गया हैं । उपरोक्त विचार के आलोक में जगत् का सत्यत्व किसी भी दशा में पारमार्थिक
नहीं है । जगत् प्रतिपल परिवर्तनों के प्रभाव में है । इसलिये जगत् को सत्य मानने
का अभिप्राय है, द्वैत है । परन्तु यह द्वैत सिद्ध नहीं
हो सकता है । जगत् केवल व्यवहारिक सत्य है । अनुभवगम्य है । व्यवहार्य है । परन्तु
काल की सीमा के अन्तर्गत है । इसलिये यह पारमार्थिक सत्य नहीं है । उपरोक्त समस्त
विवेचना द्वारा निश्कर्ष निकलता है कि पारमार्थिक सत्य अ-द्वैत है, द्वैत-दर्शन भ्रान्ति है ..... क्रमश:
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