वासना
पद-परिचय-सोपान
वासना
व्यक्ति की अ-पूर्ण-इच्छाओं का संचय वासना के नाम से जाना जाता है । वासनायें
वृत्ति-रूप में मस्तिष्क में संचित रहती हैं । संचित वासनायें मस्तिष्क को सदैव
आच्छादित करती हैं । इस आच्छादन के फल से मस्तिष्क की क्रियाशीलता प्रभावित होती
है । स्मरणीय है कि मस्तिष्क के उचित प्रयोग द्वारा विकास सम्भव हो सकता है । इस
रूप में वासनायें विकास बाधक होती हैं । व्यक्ति की सफलता और असफलता पूर्णतया
मस्तिष्क के सही उपयोग के आश्रित होती है । इस रूप में वासनायें जितनी अल्प हो
उतना व्यक्ति का हित सुरक्षित होता है । इसलिये आत्म-ज्ञान के जिज्ञासु व्यक्ति को
अपने मस्तिष्क को शान्त रखने के लिये संयमित जीवन-यापन की अनुशंसा की जाती है ।
मस्तिष्क में अ-वांक्षित वृत्तियों का विद्यमान रहना, उसका प्रदूषण होता है । मस्तिष्क में अ-वांक्षित वृत्तियों की अनियन्त्रित
गति, उसकी अशांति होती है । दोनो ही अवांक्षित
होती हैं । इस रूप में वासना हित नहीं होती हैं ..... क्रमश:
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