असुर


पद-परिचय-सोपान                        
असुर संस्कृत शब्द “असु” का अर्थ इन्द्रिय होता है । इन्द्रियों के पोषक को असुर कहा जाता है । इन्द्रीय वासनाओं के पोषक असुर होते हैं । जीवन का सामान्य-स्वरूप प्रत्येक व्यक्ति का एक समान होता है, यथा प्रत्येक व्यक्ति खाता है, सोता है, जगता है, कर्म करता है । परन्तु फिर भी प्रत्येक व्यक्ति में अन्तर व्यवहारिक जगत् का नित्य का अनुभव है । यह अन्तर व्यक्ति के मस्तिष्क के प्रयोग द्वारा सृजित होता है । व्यक्ति का मस्तिष्क किन विचारो की वरीयता पोषित करता है, यह भेद का आधार बनता है । इन्द्रीय-वासना-वृत्तियों को पोषित करना यह एक वरीयता-पथ है । आत्म-स्वरूप को प्रधान-पोषण बनाना एक भिन्न वरीयता-पथ है । इन्द्रीय-वासना-वृत्तियों को पोषित करना मानसिक-संकीर्णता को प्रशस्थ करता है । आत्म-स्वरूप को प्रधान-पोषण बनाना मानसिक-व्यापकता को प्रशस्थ करता है ......... क्रमश: 

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