पारमार्थिक-सत्य


पद-परिचय-सोपान
पारमार्थिक-सत्य पारमार्थिक सत्य कालातीत है । माया सृष्टि काल और आकाश की सीमा के अन्तर्गत सीमित है, जबकि पारमार्थिक सत्य अनन्त है । आकाश और काल उस पारमार्थिक से सम्भव हुये हैं । काल और आकाश ये अनन्त पारमार्थिक को स्पर्ष भी नहीं कर सकते हैं । अनन्त पारमार्थिक की कल्पना अथवा धारणा सीमित जगत् का अवयव मस्तिष्क धारण ही नहीं कर सकता है । पारमार्थिक किसी भी दशा में विकारी नहीं हो सकता है । क्योंकि विकार सदैव परिवर्तन द्वारा सम्भव होते हैं । अनन्त में किसी परिवर्तन की सम्भावना हो ही नहीं सकती है । पारमार्थिक सदैव असंग है । क्योंकि संग सदैव सजातीय से ही हो सकता है । अनन्त का सजातीय सम्भव ही नहीं हो सकता है । पारमार्थिक अद्वयम् है । क्योंकि द्वितीय की कल्पना ही अनन्त को सीमित करने पर ही हो सकती है । अनन्त पारमार्थिक किसी भी दशा में प्रमेय नहीं हो सकता है । अनन्त सदैव विषय है । अनन्त किसी भी दशा में वस्तु नहीं हो सकता है ........ क्रमश:

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