त्रि-स्तरीय सत्य
पद-परिचय-सोपान
त्रि-स्तरीय सत्य सत्य के तीन स्तर व्यवहारिक जगत् में अनुभवगम्य हैं । पहला
पारमार्थिक सत्य है । पारमार्थिक सत्य उसे कहा जाता है जो कि त्रि-कालिक सत्य है ।
जो सत्य, काल के तीनो ही अवयवों भूत-काल, वर्तमान-काल, भविष्य-काल में सत्य है वह त्रिकालिक सत्य है । विगत जो
व्यतीत हो चुका है, वर्तमान जो को व्यव्हृत हो रहा है, भविष्य जो कि अभी व्यक्त नहीं हुआ है । पारमार्थिक सत्य काल की सीमा के
परे भी होता है । काल की सीमा माया क्षेत्र के लिये प्रभावी होती है । पारमार्थिक
सत्य माया-तीत अर्थात काला-तीत है । दूसरा व्यवहारिक सत्य है । सत्य जो कि
व्यवहार के लिये सत्य है परन्तु सत्यत्व की मीमांसा में वह सत्य प्रमाणित नहीं
होता है । व्यवहार काल और आकाश की सीमा पर्यन्त है, इसलिये व्यवहारिक
सत्य केवल काल और आकाश की सीमा पर्यन्त सीमित है । काल और आकाश की सीमा पर्यन्त ही
माया सृजित जगत् है । तीसरा प्रातिभासित सत्य है । जो कि जिस काल में वह अनुभवगम्य
है वह सत्य प्रतीत होता है । अनुभव किया जाने वाले काल के विगत होने पर
प्रातिभासित-सत्य का कोई अस्तित्व नहीं होता है । स्वप्न, स्वप्नकाल में सत्यवद् अनुभवगम्य होता है । उपरोक्त समस्त विवरण के
अनुसार सत्य की तीन स्तरों का आंकलन, उनके सत्यत्व की सीमा का आंकलन है ।
पारमार्थिक निर्पेक्ष सत्य है । व्यवहारिक सापेक्ष सत्य है । प्रातिभासित का कोई
अस्तित्व नहीं है । ज्ञान के उपदेश अवधि में उपरोक्त तीनो का वहुधा उल्लेख आयेगा
इसलिय यह परिचय प्रस्तुत किया गया है । उपरोक्त तीनो ही सत्य कि विस्तृत व्याख्या
आगे के तीन अंको में प्रस्तुत की जायेगी ........क्रमश:
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