कार्य-कारण-सम्बन्ध


पद-परिचय-सोपान
कार्य-कारण-सम्बन्ध प्रत्येक कार्य का कारण होता है । प्रत्येक कारण से कार्य व्यक्त-रूपधारी होता है । प्रत्येक कार्य में कारण सदैव विद्यमान रहता है । कारण-स्वर्ण प्रत्येक कार्य-स्वर्ण-आभूषण में सदैव विद्यमान रहता है । कार्य का लय सदैव कारण में होता है । प्रत्येक कार्य-स्वर्ण-आभूषण का लय कारण स्वर्ण- कारण में होता है । कारण, अ-व्यक्त-दशा-कार्य का धारक होता है । कार्य व्यक्त दशा है । कारण अ-व्यक्त-दशा है । कारण के दो विभाजन नामत: पहला उपादान-कारण, दूसरा निमित्त-कारण किये जाते हैं । स्वर्ण-आभूषण कार्य है, कार्य-स्वर्ण-आभूषण का उपादान-कारण स्वर्ण है, और कार्य-स्वर्ण-आभूषण का निमित्त-कारण स्वर्णकार-कारीगर होता है जिसके बौद्धिक-कौशल के द्वारा स्वर्ण-आभूषण कार्य का रूप-पदार्थ सम्भव होता है । जगत् कार्य है । इस कार्य-जगत् का उपादान-कारण ब्रम्ह है, और इस कार्य-जगत् का निमित्त-कारण माया है .......... क्रमश:

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