हिरण्यगर्भ
पद-परिचय-सोपान
हिरण्यगर्भ
समष्टि-सूक्ष्म-शरीर हिरण्यगर्भ हैं । सृष्टि-प्रक्रिया में समष्टि-कारण ईश्वर
(विष्णु-भगवान) ने सर्व-प्रथम हिरण्यगर्भ को प्रगट किया अर्थात् हिरण्यगर्भ को जो
कि समष्टि-सूक्ष्म-शरीर हैं को व्यक्त-रूप में सम्मुख किया है । हिरण्यगर्भ
अर्थात् ब्रम्हाजी देवता हैं । वैदिक शिक्षण में समष्टि को देवता द्वारा व्यक्त
किया जाता है । सृष्टि प्रक्रिया में समष्टि का व्यक्त रूप पहले आता है, पुन: समष्टि ही व्यष्टि रूपों में विभक्त हो जाता है । इस प्रकार
हिरण्यगर्भ ब्रम्हाजी प्रत्येक जीव की सूक्ष्मशरीर के रूप में प्रत्येक जीव में
विद्यमान हैं । सूक्ष्म-शरीर पंच-प्राणों की भी धारक है, इस प्रकार ब्रम्हाजी समष्टि प्राण हैं । प्रत्येक जीव का प्राण अर्थात्
प्राण-देवता हिरण्यगर्भ अर्थात् ब्रम्हाजी प्रत्येक जीव के प्राण हैं । उपरोक्त
समस्त अभिव्यक्तियाँ एक दूसरे की पर्याय हैं । उपरोक्त सभी को पाठकगण अच्छे से
अपने मस्तिष्क में ग्रहण करें, ऐसा निवेदित किया जाता है, क्योंकि आगे के अंको में प्रस्तुत किये जाने वाले व्याख्या प्रसंगो के प्रकरणों में यथा प्रसंग हिरण्यगर्भ को
सन्दर्भित किया जाना है .......... क्रमश:
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