ईश्वर


पद-परिचय-सोपान                       
ईश्वर समष्टि कारण को ईश्वर कहा जाता है । जगत् का कारण ईश्वर है । देवता-रूप में समष्टि-कारण-देवता विष्णु-भगवान हैं । माया सहित ब्रम्ह को ईश्वर कहा जाता है । जगत् कार्य का कारण ईश्वर है । कारण ही कार्य के रूप में प्रगट होता है । इस रूप में विष्णु-भगवान ही समस्त जगत् के रूप में प्रगट हैं । कार्य का लय सदैव कारण में ही होता है । इस रूप में विष्णु-भगवान समस्त जगत् के लय स्थल हैं । इस स्थिति को विष्णु-भगवान की योग-निद्रा कहा जाता है । कारण से ही कार्य की उत्पत्ति होती है । इस रूप में विष्णु-भगवान ही जगत् के उद्भव-श्रोत हैं । व्यष्टि विचार में कारण-शरीर को पूर्व के अंको में बताया गया था । समष्टि विचार में विष्णु-भगवान अर्थात् ईश्वर समष्टि-कारण हैं । व्यष्टि विचार में व्यक्ति का समस्त ज्ञान सुशुप्ति-दशा में एकी-कृत-घन-रूप में कारण-शरीर में लय की दशा में रहता है । व्यष्टि-विचार में समस्त-जगत् का समस्त ज्ञान योग-निद्रा की दशा में, एकीकृत घनरूप में ईश्वर में लय की दशा में रहता है । इस रूप में ईश्वर को अन्तर्यामी कहा जाता है । उपरोक्त समस्त अभिव्यक्तिया एक ही तथ्य का अलग अलग ढंग से मात्र प्रस्तुतीकरण है । अलग अलग उपदेश प्रसंगो में अलग अलग प्रस्तुति सम्मुख होती है । उपरोक्त वर्णित समस्त प्रस्तुति को आत्मसात् करने से आगे के व्याख्या प्रसंगो को आत्मसात् करना सुगम होगा, इसलिये उपरोक्त समस्त को एक स्थल पर प्रस्तुत किया गया है । ....... क्रमश:    

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