अहंकार
पद-परिचय-सोपान
अहंकार
शुद्ध चैतन्य मस्तिष्क के साथ जब चिन्हित होता है, तो मस्तिष्क जो
कुछ भी स्वाभाविक क्रम में करता है वह अहंकार है । अहंकार मस्तिष्क का
सम्पादन है इसका चैतन्य से कंचिद कोई सम्बन्ध नहीं है । मस्तिष्क का क्रिया
सम्पादन चैतन्य के आश्रित होता है । सर्व-विभू: चैतन्य जब मस्तिष्क में व्याप्त
होता है, इस व्याप्ति के फल से ही मस्तिष्क
क्रियाशील हो जाता है । यह मस्तिष्क का रचनागत स्वभाव है, उसकी रचना में प्रयुक्त पदार्थों का फल है, यह माया की बौद्धिक कुशलता का फल है । परन्तु माया की बौद्धिक कुशलता का
अद्भुद फल इस मस्तिष्क के कार्य-कारी दशा में परिलक्षित होता है कि मस्तिष्क कंचिद
यह अनुभूति कभी भी ग्रहण नहीं कर पाता कि उसमें वर्तमान चैतन्य उसका अपना मौलिक
स्वभाव नहीं है, अपितु यह चेतन स्वरूप किसी के आश्रय से
है । फलत: मस्तिष्क इस चेतन रूप को अपने मौलिक स्वभाव की मान्यता पर आधारित समस्त
सम्पादन करता है । यह अहंकार का स्वच्छ चित्र है । मस्तिष्क का यह व्याप्त
चैतन्य इन्द्रियों पर्यन्त संचरित होता है, यह भी रचनागत स्थिति है, माया की बौद्धिक कुशलता का फल है । पुन: इन्द्रियों का चैतन्य बाह्य जगत
के प्रपंचों में संचरित होता है, पुन: यह माया की बौद्धिक कुशलता का फल है
। उपरोक्त वर्णित समस्त प्रक्रिया एक भ्रान्ति धारणा यथा वर्णित उपरोक्त पर आधारित
हैं इसलिये मस्तिष्क और इन्द्रियों से संचालित होने वाले समस्त सम्पादन
त्रुटिपूर्ण हो जाते हैं, अर्थात् सत्य से विरुद्ध जो कि हित के
विपरीत फलों को आहरित करते हैं । पुन: जीव के जीवन की तीन दशायें नामत:
जागृत-स्वप्न-सुशुप्ति यह भी मस्तिष्क की तीन अवस्थायें हैं । इन दशाओं का भी
चैतन्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता है.......क्रमश:
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