व्यक्ति का स्वरूप


पद-परिचय-सोपान     
व्यक्ति का स्वरूप किसी भी व्यक्ति का स्वरूप द्विस्तरीय है । पहला स्तर जो कि तात्विक है वह उसकी आत्मा है । दूसरा जो कि व्यवहारिक है वह उसका अहंकार है । जो व्यवहारिक है वह सर्व विदित है । इसमें उसकी स्थूल-सूक्ष्म- कारण शरीर है और उस शरीर-मस्तिष्क-समुदाय को चेतन होने की एक भ्रान्ति अनुभूति है । जो तात्विक है उसमें तीन अभिव्यक्तियाँ सत् चित् आनन्द हैं । इस तात्विक अंश आत्मा की उपस्थिति के फल से ही, जो व्यवहारिक है, उसे चेतन की अनुभूति मिलती है । परन्तु जो व्यवहारिक है, वह कंचिद किसी भी दशा में, अनुभव किये जाने वाले चेतन को, उस तात्विक का योगदान नहीं मान सकता है, बल्कि स्थिति और उलटी ही है कि उस व्यवहारिक को तो कंचिद इस तात्विक का ज्ञान तक भी नहीं है । जो तात्विक अंश है वह व्यापक है । जो व्यवहारिक है वह परिच्छिन्न है । वेद के उपदेश उपरोक्त वर्णित यथा-स्थिति एवं भेद का स्वच्छ चित्रण करता है और आह्वाहन करता है कि अपने तात्विक अंश पर अवलम्ब करें जिसके फल से व्यक्ति परिच्छिन्नता से मुक्त हो जायेगा..........क्रमश:

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