तीन अवस्थाओं का जीवन


पद-परिचय-सोपान     
तीन अवस्थाओं का जीवन प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहारिक जीवन तीन अवस्थाओं का होता है । जागृत-दशा, स्वप्न-दशा, और सुशुप्ति-दशा यह तीन दशाये नित्य प्रत्येक व्यक्ति की व्यव्हार्य दशायें हैं । जागृत दशा में व्यक्ति का मस्तिष्क बाह्य स्थूल-जगत् के साथ व्यवहार करता है । स्वप्न-दशा में व्यक्ति का मस्तिष्क कार्यकारी दशा में रहता है, परन्तु स्वप्न-दशा में व्यक्ति की इन्द्रियाँ लय की दशा में होती हैं और व्यवहार के लिये उपलब्ध नहीं होती है इसलिये वह बाह्य जगत् के साथ व्यवहार नहीं कर सकता है और वह मस्तिष्क के अन्दर ही विद्यमान वासना वृत्तियों के साथ व्यवहार करता है जो कि स्वप्न के रूप में प्रक्षेपित होती हैं । सुशुप्ति की दशा में मस्तिष्क व्यवहार के लिये उपलब्ध नहीं रहता है । सुशुप्ति की दशा में मस्तिष्क कारण शरीर में लय की दशा में रहता है । सुशुप्ति की दशा में व्यक्ति का समस्त ज्ञान एकीकृत घन-रूप में पर्णित हो जाता है । यह तीन दशाओं का परिचयात्मक सार है । तीनो दशाओं का विस्तृत विवरण आगे के तीन अंको में ........ क्रमश:  

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