तीन मौलिक जिज्ञासायें
पद-परिचय-सोपान
तीन मौलिक जिज्ञासायें जहाँ तक जीव सृष्टि का इतिहास है, मनुष्य के मस्तिष्क में तीन जिज्ञासायें
रहीं हैं, पहली जिज्ञासा क्या यह जीवन इतना
ही है कि एक शिशु का जन्म होता है, खेलते खेलते वह युवक हो जाता है, कुछ एक सन्तानों की उत्पत्ति करता है, बूढा हो जाता है, फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, अथवा उपरोक्त वर्णित से अधिक कुछ
सार-गर्भित भी इस जीवन में है ? दूसरी जिज्ञासा मनुष्य के सामने
विस्तृत फैला हुआ आकर्षक सुन्दर जगत् जो कि प्रति-पल परिवर्तनो के अधीन है, जीवों का जन्म हो रहा है कालान्तर से मृत्यु हो रही है, क्या उपरोक्त वर्णित समस्त परिवर्तन ही एक-मात्र विकल्प है अथवा उपरोक्त
वर्णित समस्त परिवर्तनशील जगत् से विलक्षण कोई अ-परिवर्तनीय सत्ता भी है ? तीसरी जिज्ञासा क्या ईश्वर भी कोई है ? यदि है तो उस ईश्वर का इन जीव-प्रपंचों के साथ और इन जड-प्रपंचों के साथ
कोई सम्बन्ध है ? यदि है तो वह क्या है ? तीनो ही अति स्वाभाविक और उचित प्रश्न हैं । वर्तमान लेख-श्रंखला के
प्रथम अंक, प्रकाशित दिनांक 21-जनवरी-2018 में, जिस आत्म-ज्ञान का उल्लेख किया गया है, वह आत्म-ज्ञान ही उपरोक्त तीनों ही प्रश्नो का उत्तर है ........ क्रमश:
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