जन्म-मृत्यु-चक्र
पद-परिचय-सोपान
जन्म-मृत्यु-चक्र शास्त्र उपदेश करते हैं कि
जीव की वर्तमान
शरीर का कारण, उसके पूर्व के संचित कर्म-फलों का भोग
होता है । कर्म का सम्पादन शरीर द्वारा ही सम्भव है । इसलिये उपरोक्त उपदेश एवं
अभिव्यक्ति मिलकर एक प्रश्न सृजित करता है कि पहले शरीर का प्रादुर्भाव हुआ अथवा
कर्म का प्रादुर्भाव हुआ है ? अत्यन्त स्वाभाविक और उचित प्रश्न है ।
अनादिकाल से विद्वानो के मध्य यह प्रश्न परस्पर विचार का केन्द्र रहा है ।
विद्वानो द्वारा निर्धारित निर्णय है कि सृष्टि-प्रकरण एक चक्रीय व्यवस्था है, इसलिये किसी भी वृत्ताकार व्यवस्था के प्रारम्भिक बिन्दु का विचार न ही
महत्व-पूर्ण होता है, और न ही सम्भव हो सकता है, फिरभी यदि शैक्षिक महत्व की दृष्टिकोण से उपरोक्त निर्धारण आवश्यक हो तो
ऐसी दशा में जीव के स्वतन्त्र निर्धारण अधिकार के अन्तर्गत किये गये स्वयं
की इच्छा पूर्ति हेतु कर्म को प्रथम मानना उचित निर्णय के रूप में ग्रहण किया
जाय ........ क्रमश:
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