प्रतिभासित-सत्य


पद-परिचय-सोपान   
प्रतिभासित-सत्य पारमार्थिक सत्य और व्यवहारिक सत्य से विलक्षण प्रातिभासित सत्य है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता है, फिर भी जिस काल-अवधि में यह अनुभव-गम्य होता है उस अवधि में यह सत्य प्रतीत होता है । प्रश्न उठता है कि जब इसका कोई अस्तित्व नहीं होता है तो यह अनुभव-गम्य कैसे होता है ? उत्तर है कि इसकी उत्पत्ति और अनुभव-गम्यता दोनो ही माया की अद्भुद शक्ति का फल है । माया वह प्रक्षेपित करके सत्यवद् दर्शाती है, जिसका कि अस्तित्व नहीं है । व्यक्ति निद्रा-अवधि में स्वप्न-काल में क्या क्या दृष्य देखता है ? जिस अवधि में स्वप्न के दृष्य अनुभव-गम्य होते हैं, उस अवधि में व्यक्ति उन स्वप्न के दृष्यों से प्रभावित होता है, भयभीत होता है, हर्षित होता है, विस्मय करता है । यह जगत् कारण-ईश्वर-विष्णु-भगवान का स्वप्न है जिसे माया प्रक्षेपित करके यथा-स्वरूप प्रस्तुत कर रही है । उपरोक्त वर्णित विलक्षण सत्य को इस ज्ञान-यात्रा में बारम्बार सन्दर्भित किया जायेगा इसलिये इसकी स्वच्छ छवि मस्तिष्क में अच्छे से स्थापित करने की अपेक्षा है कि यह वह सत्य है जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता है फिरभी यह अनुभवगम्य होता है और अनुभव-काल में यह सत्य प्रतीत होता है ....... क्रमश:

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