कर्म-कर्मफल


पद-परिचय-सोपान
कर्म-कर्मफल कर्मों की कर्ता प्रकृति है यह प्रकृति का संविधान है । इस संविधान का सहज़ अर्थ है कि जीव केवल प्रकृति का प्रतिनिधि है । प्रतिनिधि के रूप में जीव को वही कर्म करना अपेक्षित है, जो कि प्रकृति की अपेक्षानुसार है । परन्तु जीव उपरोक्त वर्णित अपेक्षा का उलंघन करते हुये स्वयं की इच्छा-पूर्ति के कर्म भी करता है । उपरोक्त कथित इच्छा-पूर्ति के लिये किये गये कर्म से जो कर्म-फल जनित होते हैं, जीव उन कर्म-फलों का बाध्य भोक्ता होता है । उपरोक्त कथित इच्छा-पूर्ति के कर्मों द्वारा सृजित कर्म-फलो के संचित भण्डार का भोग कराने के लिये ही इस जगत् की उत्पत्ति होती है । परन्तु आपका स्वरूप आपकी आत्मा न ही कर्ता है, और न ही भोक्ता है .......... क्रमश:   

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