त्रिकुटी


पद-परिचय-सोपान
त्रिकुटी प्रमाता-प्रमाण-प्रमेय, कर्ता-करण-कार्य इन्हें त्रिकुटी कहा जाता है । इनमें प्रत्येक अवयव का परिचय इस प्रकार है । प्रमाता – जो अनुभव-ज्ञान ग्रहण करता है उसे प्रमाता कहा जाता है । अनुभव-ज्ञान ग्रहण करने के लिये व्यक्ति जिस भी ज्ञानेन्द्री का प्रयोग करता है, उसे प्रमाण कहा जाता है । ज्ञातव्य है कि व्यक्ति की पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच प्रमाण होती हैं । अनुभव-ज्ञान का जो लक्ष्य होता है उसे प्रमेय कहा जाता है । जो कर्म को करने वाला व्यक्ति है उसे कर्ता कहा जाता है । किसी भी कर्म को करने के लिये कर्ता-व्यक्ति जिस भी कर्मेन्द्रिय का प्रयोग करता है, उसे करण कहा जाता है । ज्ञातव्य है कि व्यक्ति के पास पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं, वह पाँचो कर्मेन्द्रियाँ पाँच करण होती हैं । कर्ता व्यक्ति की कर्म को करने के लिये प्रयोग की जा रही कर्मेन्द्रि के उद्यम् से सृजित होने वाले फल को कार्य कहा जाता है ....... क्रमश:   

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