पटाक्षेप
पटाक्षेप
अब तक की ज्ञान-गंगा-यात्रा में आप परिचित हो गये हैं कि अब तक का जीवन आप एक
भ्रामक परिचय के आश्रय पर जीते आये हैं । जिस शरीर-मस्तिष्क समुदाय को आप अपना
परिचय बताते हैं, वह जड पदार्थों से निर्मित और स्वयं जड
स्वभाव का हैं । आप कहेंगे कि परन्तु हम तो चेतन हैं । आप का कहना भी सत्य है । आप
चेतन सदृष्य व्यवहार कर रहे हैं, परन्तु आपका चेतन आपकी शरीर-मस्तिष्क
समुदाय की अपनी सम्पत्ति नहीं है । आपका चेतन आपकी शरीर-मस्तिष्क समुदाय का मौलिक
धर्म नहीं है । अब आप प्रश्न करेंगे कि फिर यह चेतन व्यवहार क्या है ? उत्तर है, चेतन-तत्व आपकी शरीर-मस्तिष्क-समुदाय से
विलक्षण आपकी आत्मा का प्रसाद है । उपरोक्त कथित चेतन-तत्व-आत्मा का बोध ही
वर्तमान ज्ञान-गंगा-प्रवाह का लक्षित गन्तव्य स्थल है । परन्तु यह आत्मा सूक्ष्मतम
तत्व है जिसका ज्ञान-बोध केवल वेद-शास्त्र के आश्रय द्वारा क्रमबद्ध प्रयत्नों से
ही सम्भव हो सकता है । उपरोक्त वर्णित प्रयत्न में उद्यत होने से पूर्व आपका परिचय
कुछ नामों, कुछ प्रक्रियाओं, कुछ स्थितियों से कराना इसलिये आवश्यक है क्योंकि इनका प्रयोग बारम्बार
उपरोक्त-कथित ज्ञान-यात्रा की अवधि में यथा-समय प्रकरणों की व्याख्या में किया
जाता है । अगले अंक से एक एक अवयव का परिचय एक-एक अंक में प्रस्तुत किया जायेगा
....... क्रमश:
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