ज्ञान-फल

ज्ञान-फल आत्मज्ञानी विद्वान आचार्य आदि-शंकर वृहदारण्यक उपनिषद के अपने भाष्य में ज्ञानी के लक्षणों को बताते हुये लिखते हैं कि अमानित्वम्, अदम्भित्वम्, अहिंसा, क्षान्ति:, आर्जवम्, आचार्य-उप-आसनम्, शौचम्, स्थैर्यम्, आत्म-विनिग्रह:, वैराग्यम्, अन-अहंकार, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दु:ख-दोष-अनुदर्शनम्, आसक्ति:, अनाभिष्वंग:, नित्यं, सम:-चित्तत्वं, इष्ट-अनिष्ट-उपपत्तेषु ज्ञानी का परिचय बन जाते है । उपरोक्त वर्णित समस्त गुण-धर्मों का विस्तृत परिचय आगे के अंको में दिया जायेगा । व्यक्ति की आत्मा और ब्रम्ह दोनो भिन्न नहीं हैं अपितु एक ही हैं । आत्म-ज्ञान का अर्थ ब्रम्ह-ज्ञान है । ब्रम्ह-ज्ञानी स्वयं ब्रम्ह है । उपरोक्त सभी अभिव्यक्तियाँ एक दूसरे की पर्याय हैं । आत्म-ज्ञानी इस बसुन्धरा पर जीवित-चलता-फिरता ब्रम्ह होता है । ........क्रमश:   

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