शब्द-ब्रम्ह-वेद
शब्द-ब्रम्ह-वेद महर्षि वेद-व्यास द्वारा वेदों को चार भागों में विभक्त किया गया है ।
उपरोक्त विभाजन का आधार उनमें निहित पाठ्य पर आधारित है । यह विभाजन का एक पक्ष है
। वेदों के विभाजन का एक दूसरा पक्ष भी है । यह पक्ष उसके निहित विषय पर आधारित है
। इसके अनुसार वेदों को तीन भागों में, नामत: पहला कर्म-काण्ड, दूसरा उपासना-काण्ड, तीसरा ज्ञान-काण्ड में, विद्वानो द्वारा विभक्त किया जाता है । संस्कृत भाषा में काण्ड शब्द का
प्रयोग विषय अथवा प्रसंग को व्यक्त करने के लिये किया जाता है । इस प्रकार उपरोक्त
वर्णित काण्डो को कर्म-प्रसंग, उपासना-प्रसंग, ज्ञान-प्रसंग भी कहा जा सकता है । यह नया नाम-करण विभाजन को समझने में
सुगम बनाने के दृष्टिकोण से किया जाता है । कर्म-काण्ड यज्ञों की क्रिया-पद्धति से
सम्बन्धित काण्ड है । यज्ञ विधान देवताओं को तुष्ट करने के उद्देष्य से किये जाते
हैं । इन यज्ञ कर्मों के फल से मस्तिष्क पवित्र होता है । उपासना मानसिक-कर्म होती
है । उपासना के फल से मस्तिष्क का विस्तार होता है । विस्तार मस्तिष्क के प्रकरण
में उसकी कार्य-क्षमता के विचार से है । ज्ञान-काण्ड ज्ञान-स्वरूप का प्रसंग है ।
ज्ञान-स्वरूप स्वयं ब्रम्ह है । इस रूप में वेदों को शब्द-ब्रम्ह भी कहा जाता है ……… क्रमश:
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