विचार-प्रवेष-सतत्
विचार-प्रवेष-सतत्
वर्तमान लेख-श्रंखला के नाम ज्ञान गंगा के पहले शब्द की व्यख्या
गत अंक में निवेदित करने के उपरान्त वर्तमान अंक में दूसरे शब्द गंगा की
व्याख्या निम्नवत् प्रस्तुत की जा रही है-
विचार
का उदय मस्तिष्क में होता है । मस्तिष्क व्यष्टि स्तर पर भी है और समष्टि मस्तिष्क
का भी उल्लेख शास्त्रों में वर्णित है । मस्तिष्क के विचार का संचार प्रवृत्त किया
जाता है । यह संचार स-उद्देष्य होता है । एक मस्तिष्क में उदय होने वाला अथवा
पूर्व से संचित विचार बहुसँख्यक को विचार के लिये उपलब्ध हो सके, यह संचार का उद्देष्य होता है । उपरोक्त कथित संचार यदि सतत् होता रहे
तो वह प्रवाह बन जाता है । वर्तमान आत्म-ज्ञान का प्रकरण विस्तृत और गहन
विचार का प्रकरण है । इसलिये उपरोक्त आत्म-ज्ञान के प्रकरण को सतत् एक श्रखंला के
रूप में संचरित करने से ही उसका संचरण एक मस्तिष्क से बहुसंख्यक मस्तिष्क पर्यन्त
सम्भव है । आत्म-ज्ञान शाश्वत् ज्ञान स्वरूप है । गंगा शाश्वत् एवं प्रवाह
का आदर्श प्रतीक है । इस अभिप्राय से, वर्तमान लेख श्रंखला में लक्षित ज्ञान
संचार, की अभिव्यक्ति के लिये, लेख-श्रंखला का नामकरण ज्ञान-गंगा किया गया है । यह यात्रा बन्धन
के जीवन से मुक्त जीवन पर्यन्त की यात्रा है । यह यात्रा जन्म-मृत्यु के चक्र से
मोक्ष की स्थिति की यात्रा है । सविनय आग्रह है कि इस पावन यात्रा में सम्मलित
होकर पवित्र हों धन्य हों !............क्रमश:
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